• उच्च मुद्रास्फीति के बीच मंदी का साया

    सरकार और अन्य स्रोतों से हाल ही में कई डेटा पॉइंट सामने आए हैं जो अर्थव्यवस्था के धीमे होने यानी मंदी की ओर इशारा कर रहे हैं। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि यह चक्रीय (साइक्लिकल) मंदी है या नहीं।

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    — डॉ.अजीत रानाडे
    अगस्त में वस्तुओं का निर्यात घटकर 34 अरब 70 करोड़ डॉलर रह गया जिसके कारण व्यापार घाटा बढ़ गया। डॉलर के मुकाबले रुपया भी 84 से नीचे आ गया है जिससे घाटे और मुद्रास्फीति को लेकर चिंता पैदा हो गई है। सितंबर में परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स आठ महीने के निचले स्तर 56.5 पर था जबकि यह अगस्त में 57.5 था। भविष्य के नजरिये से यह कारखाने प्रबंधकों की तेजी का एक संकेतक है।

    सरकार और अन्य स्रोतों से हाल ही में कई डेटा पॉइंट सामने आए हैं जो अर्थव्यवस्था के धीमे होने यानी मंदी की ओर इशारा कर रहे हैं। यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि यह चक्रीय (साइक्लिकल) मंदी है या नहीं। क्या यह एक पैटर्न है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के साथ जुड़ा है, तो हमें इसे जांचना होगा : और अगर यह चक्रीय यानी अस्थायी है तो छह महीने बाद अर्थव्यवस्था में उठाव होना चाहिए। फिर भी त्योहारी सीजन के दौरान अर्थव्यवस्था का धीमा पड़ना, भले ही चक्रीय रूप से हो, चिंता की बात है। कैलेंडर वर्ष की अंतिम तिमाही में त्योहारी उत्साह और उपभोक्ता खर्च के कारण आमतौर पर उपभोक्ता उत्साह और आशावाद से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है लेकिन ऐसा लगता है कि इस समय यह गायब है।

    सबसे पहले डेटा बिंदु पर विचार करें! ये औद्योगिक उत्पादन, निर्यात, कर संग्रह विशेष रूप से माल और सेवा कर (जीएसटी) से होते हैं। ये सभी आंकड़े सरकार के हैं। फिर भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े और आकलन हैं। रिजर्व बैंक ने हाल ही में अपनी मौद्रिक नीति बैठक में ब्याज दरों में कटौती न करने का फैसला किया। आरबीआई आर्थिक मत जानने के लिए सर्वेक्षण आयोजित करता है और हर तिमाही इसकी रिपोर्ट देता है। यह सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था के भविष्य के प्रक्षेपवक्र का संकेत देता है। अंत में निजी स्रोतों से डेटा है, जैसे कि खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) या कंपनियों के तिमाही परिणाम जो उनकी आय, लाभ और विकास की रिपोर्ट देते हैं।

    अगस्त में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) नीचे चला गया। विकास दर लगातार तीन महीने से नीचे जा रही थी। अगस्त की संख्या (नकारात्मक 0.1) लगभग दो वर्षों में सबसे कम है। यद्यपि आईआईपी को अस्थिर माना जाता है और यह कार्योत्तर परिवर्तनों और समायोजनों के अधीन है लेकिन इसकी प्रवृत्ति विशेष रूप से औद्योगिक उत्पादन में स्पष्ट रूप से मंदी दिखा रही है। बेमौसम बारिश से खनन गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है लेकिन औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में मंदी पर ध्यान दिया जाना चाहिए। त्योहारी मौसम में औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र की वृद्धि को बढ़ावा देने वाले प्रमुख उद्योगों में से एक वाहन की बिक्री में सितंबर में 19 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसी से संबंधित मामला सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स के तमिलनाडु कारखाने में दो महीने की हड़ताल है। यह कारखाना भारत में सैमसंग के बिक्री राजस्व का लगभग 20,000 करोड़ रुपये का योगदान देता है और भारत में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

    सितंबर में ही भारत में स्वीडिश वोल्वो ग्रुप के प्रबंध निदेशक ने भी आगाह किया था कि देश के औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में टिकाऊ तथा उच्च जीडीपी विकास को चलाने के लिए पर्याप्त रूप से सुधार करना होगा। औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र का हिस्सा सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 16 प्रश पर अटका हुआ है एवं 'मेक इन इंडियाÓ जैसी मजबूत पहल के बावजूद बहुत अधिक नहीं बढ़ा है।

    विदेशी कंपनियों को चीन से दूर स्थानांतरित करने या कम से कम कई पश्चिमी कंपनियों के लिए चीन से दूर विविधीकरण करने के लिए भारत उन्हें आकर्षित करने वाला था लेकिन यह अभी तक बड़े पैमाने पर नहीं हुआ है। सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स स्थापित करने की बड़ी योजनाएं, साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पहल के मामले में भारत की महत्वाकांक्षा बहुत बड़ी है लेकिन जमीनी स्तर पर वास्तविक प्रगति से बहुत कम हैं। औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र के विकास के लिए जो एक अन्य पहलू महत्वपूर्ण है, वह है कौशल की कमी।

    इस साल के आरंभ में ताइवान के विदेश मंत्री ने चेतावनी दी थी कि अगर भारत चिप बनाने और सेमीकंडक्टर निर्माण में निवेश आकर्षित करना चाहता है तो वह कुशल इंजीनियरों की कमी को दूर करे। ताइवान इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में भारत की मदद करने का इच्छुक है लेकिन वह चाहता है कि भारत बुनियादी ढांचे और उच्च आयात शुल्क जैसी अन्य बाधाओं को दूर करे। विडंबना यह है कि भारत में विनिर्माण के लिए आवश्यक कौशल की कमी है। 25 से 30 आयु वर्ग के लगभग 30 प्रतिशत कॉलेज स्नातक बेरोजगार हैं। इसका मतलब यह है कि महाविद्यालयीन शिक्षा उन्हें उद्योग के लिए तैयार या रोजगार योग्य नहीं बना रही है। यह शिक्षा पाठ्यक्रम की स्थिति और युवाओं को काम के लिए तैयार करने में शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका पर एक गंभीर टिप्पणी है। आवश्यक कौशल की इस कमी को ऑटो, ऑटो एंसिलरी, कपड़ा और खनन सहित विभिन्न क्षेत्रों में महसूस किया जाता है।

    अगस्त में वस्तुओं का निर्यात घटकर 34 अरब 70 करोड़ डॉलर रह गया जिसके कारण व्यापार घाटा बढ़ गया। डॉलर के मुकाबले रुपया भी 84 से नीचे आ गया है जिससे घाटे और मुद्रास्फीति को लेकर चिंता पैदा हो गई है। सितंबर में परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स आठ महीने के निचले स्तर 56.5 पर था जबकि यह अगस्त में 57.5 था। भविष्य के नजरिये से यह कारखाने प्रबंधकों की तेजी का एक संकेतक है।

    जीएसटी में संग्रह की प्रवृत्ति भी धीमी अर्थव्यवस्था की ओर इशारा करती है। सितंबर में जीएसटी संग्रह 1.73 लाख करोड़ रहा जो अगस्त के 1.75 लाख करोड़ की तुलना में कम है। सितंबर का कलेक्शन पिछले साल की तुलना में मुश्किल से 6.5 फीसदी ज्यादा रहा। शुद्ध रिफंड संग्रह सितंबर में 1.53 लाख करोड़ रहा जो एक साल पहले की तुलना में सिर्फ 3.9 प्रति सैकड़ा ज्यादा है। चूंकि जीएसटी एक लेन-देन कर है इसलिए यह नाममात्र जीडीपी की वृद्धि के साथ तालमेल रखता है जो मुद्रास्फीति और मात्रा वृद्धि के कारण लगभग 10 फीसदी या उससे अधिक बढ़ रहा है। अगर जीएसटी नॉमिनल जीडीपी की तुलना में धीमी गति से बढ़ रहा है तो निश्चित रूप से यह चिंता का संकेत है। इस चिंता को बढ़ाने वाली खबर यह है कि जीएसटी परिषद जीएसटी दरों में बढ़ोतरी पर विचार कर सकती है ताकि यदि मुआवजा उपकर (कंपन्शेसन सेस) को हटा दिया जाए तो उससे उत्पन्न होने वाली कमी को पूरा किया जा सके। इन सभी वर्षों में यह उपकर राज्य सरकारों को भुगतान करने के लिए लगाया गया है ताकि राज्यों को बिक्री कर लगाने के अधिकार के आत्मसमर्पण के कारण उनके अनुमानित नुकसान की भरपाई की जा सके।

    इस प्रकार विभिन्न तिमाहियों से प्राप्त संकेतक अर्थव्यवस्था के धीमे होने के हैं। यहां तक कि औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार भी कार्यबल के 12 से 11 फीसदी तक नीचे चला गया जबकि कृषि क्षेत्र में रोजगार 2018-19 में 43 प्रश से बढ़कर अब 46 फीसदी हो गया है यानी 6.8 करोड़ श्रमिकों की वृद्धि हुई है। लेकिन कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में वापस जाने वाले श्रमिकों का मतलब है कि वे औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र तथा सेवाओं की तुलना में कम मजदूरी एवं कम उत्पादकता वाली नौकरियों में जा रहे हैं। इसका अर्थ कम क्रय शक्ति और इसलिए कम उपभोक्ता खर्च हो सकता है। हमें उपभोक्ता खर्च के साथ-साथ घरेलू आय में वृद्धि के लिए औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र में रोजगार में तेजी से वृद्धि करने की आवश्यकता है।

    यह अभी भी सच है कि चीन सहित अधिकांश अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका 3 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है जो भारत के 30 प्रतिशत की दर से बढ़ने के समान है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से दस गुना बड़ा है और संयुक्त राज्य अमेरिका अभी तक मंदी का सामना नहीं कर रहा है। इसलिए, भारत की मंदी के लिए वैश्विक घटना के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इसके अलावा हमें यूक्रेन एवं मध्य पूर्व में युद्धों के प्रभाव तथा तेल की बढ़ती कीमतों व मुद्रास्फीति के बारे में भी चिंता करने की आवश्यकता है। यहां तक कि आरबीआई ने जिसे आर्थिक विकास को गति देने के लिए ब्याज दरों में कमी करनी चाहिए थी, उसने भी मुद्रास्फीति की चिंता के कारण ब्याज दरें नहीं घटाईं। अगले छह महीने अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण दिखते हैं क्योंकि ये धीमी अर्थव्यवस्था और अभी भी उच्च मुद्रास्फीति की दोहरी चुनौतियों के बीच मार्ग दर्शन करने वाले हैं।
    (लेखक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। सिंडिकेट : द बिलियन प्रेस)

     

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